बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन
प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
उत्तर -
स्वच्छंदतावादी काव्य की एक अन्य प्रवृत्ति है वास्तविक जगत् से पलायन। ये कवि संसार की संकीर्णताओं, कठोरताओं, रूढिगत मान्यताओं से तंग आ चुके थे। ये कवि ऐसे स्वप्नलोक में विचरण करते हैं जहाँ संसार की बाधाएँ इन्हें व्याकुल नहीं करती 'इसलिए ये लोग कल्पना का अधिक आश्रय लेते हैं। ऐन्द्रि जन्य सौन्दर्य इन कवियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। उसी से ये लोग प्रेरणा ग्रहण करते हैं और प्रकृति की मनोरमता में खोए रहते हैं।
जगत से पलायन के कारण स्वच्छंदतावादी कवि अद्भुत और आश्चर्य के प्रति आग्रहशील हैं। इसलिए इनकी कविता में रहस्यवाद और अतिमानवीय तत्त्वों का समावेश हो गया है।
स्वच्छंदतावादी कवि परपीड़ा से द्रवीभूत हो उठता है। वह दूसरों के कष्टों क्लेशों को स्वयं में समाविष्ट कर लेता है। लोगों को वेदना व्यथा के कारण उसके मन में भी वेदना व्याप्त हो जाती है। ये कवि दुःख में भी सुख का अनुभव करने लगते हैं और काव्य के द्वारा अपनी वेदना- व्यथा तथा निराशा आदि का वर्णन करने लगते हैं। प्रिय की निष्ठुरता के कारण ये कवि सहानुभूतिशील होकर जीवन को दुःखों का घर मान लेते हैं। पहले तो ये प्रिय को दुःख पहुँचाना चाहते हैं। लेकिन ऐसा न करके स्वयं को दुःख पहुँचाने लगते हैं। स्वः पीड़ा में ही इनको आनन्द की अनुभूति होती है। लेकिन इनका दुःख वास्तविक न होकर मात्र काल्पनिक होता है। स्वच्छंदतावाद में स्वः दुखानुभूति की अधिकता देखकर गेटे ने क्षुब्ध होकर कहा कि, "स्वच्छन्दतावाद रूग्ण (बीमार ) है।'
हिन्दी में छायावाद ने स्वच्छंदतावादी काव्यप्रवृत्तियों को व्यापक स्तर पर ग्रहण किया। छायावाद में स्वाभानुति एवं निज दुःखों की अनुभूति का व्यापक वर्णन हुआ है। निराला की एक पंक्ति दृष्टव्य है -
कन्ये मैं पिता निरर्थक था
कुछ भी तेरा हित न कर सका
जाना था अर्थागमोपाय
पर रहा सदा संकुचित काय
लखकर अनर्थ आर्थिक पथ पर
हारता रहा मैं स्वार्थ समर।
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